घरेलु अमृत संजीवनी: कई जानलेवा लाइलाज बीमारियों की एक ग्यारंटेड दवा
कई बार बड़ी बीमारियों का इलाज करवाते हुए। हम थक जाते हैं लेकिन अच्छे से अच्छे और महंगा से महंगा इलाज करवाने पर भी बीमारी ठीक नहीं हो पाती। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा आजमाएं हुए सौ-प्रतिशत कारगर नुस्खे ही एक मात्र उम्मीद होते हैं। वाकई में ये नुस्खे काम भी करते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में रासायन कहा जाता है। ऐसा ही एक योग है अमृत संजीवनी रासायन योग जिसे आप घर पर ही बनाकर कई जानलेवा बीमारियों का इलाज कर सकते हैं।
बनाने की विधि और सामग्री - अमृता, खस, नीम की छाल, मछेली, अडूसा, गोबर मुदपर्णी, सेमल, मूसली, शतावर, सभी को अलग-अलग कर एक किलो लेकर जौकुट करके आठ गुने पानी में पकाएं। जब पानी 4 भाग शेष रह जाएं। तब एक किलो गुड़ (बिना मसाले का) अडूसा, शतावरी, आंवला, मछेली का कल्क प्रत्येक 160-160 ग्राम-काली गाय के घी में धीमी आंच पर पकाएं।
घी मात्र जब शेष रह जाए तो छानकर खस, चंदन, त्रिजातक, त्रिकुटा, त्रिफला, त्रिकेशर ( नागकेशर, कमल केशर) वंश लोचन, चोरक, सफेद मुसली, असगंध, पाषाण भेद, धनिया, अडूसा, अनारदाना, खजूर, मुलैठी, दाख, निलोफर, कपूर, शीलाजीत, गंधक सभी दस-दस ग्राम लेकर कपड़छन करके उपरोक्त घी में मिला दें।
मात्रा-सुबह खाली पेट 10 ग्राम घृत गौ- दूध में डालकर सेवन करें और एक घंटे तक कुछ भी ना खाएं।
गुण-सभी प्रकार के कैंसर में प्रथम व द्वितीय अवस्था तक के अलग-अलग अनुपान से, पुराना गठिया, घुटनो में सुजन व दर्द, साइटिका, अमाशय में पितरोग, नामर्दी, शुक्राणु का अभाव, शीघ्र पतन, पागलपन, अवसाद, बिगड़ी हुई खांसी, गलगंड, पीलिया, वात रोग, रक्तरोग, रसायन, वाजीकरण, श्वास रोग, गले के रोग, हृदय रोग, पिताशय की पथरी में लाभकारी। जो स्त्री रजोदोष से पीडि़त हो, जिस स्त्री के रजनोप्रवृति प्रारंभ ही न हुई हो, जो कष्ट पीडि़त हो तथा जिन स्त्रियों को बार-बार संतान होकर मर जाती हो, उन सभी को राहत मिलेगी। मासिक धर्म शुरू होकर बीच में ही बंद हो गया हो और अनेकों औषधी व मंत्रों के प्रयोग से संतान उत्पन्न न हुई हो उन्हें निश्चित ही संतान होगी।
बनाने की विधि और सामग्री - अमृता, खस, नीम की छाल, मछेली, अडूसा, गोबर मुदपर्णी, सेमल, मूसली, शतावर, सभी को अलग-अलग कर एक किलो लेकर जौकुट करके आठ गुने पानी में पकाएं। जब पानी 4 भाग शेष रह जाएं। तब एक किलो गुड़ (बिना मसाले का) अडूसा, शतावरी, आंवला, मछेली का कल्क प्रत्येक 160-160 ग्राम-काली गाय के घी में धीमी आंच पर पकाएं।
घी मात्र जब शेष रह जाए तो छानकर खस, चंदन, त्रिजातक, त्रिकुटा, त्रिफला, त्रिकेशर ( नागकेशर, कमल केशर) वंश लोचन, चोरक, सफेद मुसली, असगंध, पाषाण भेद, धनिया, अडूसा, अनारदाना, खजूर, मुलैठी, दाख, निलोफर, कपूर, शीलाजीत, गंधक सभी दस-दस ग्राम लेकर कपड़छन करके उपरोक्त घी में मिला दें।
मात्रा-सुबह खाली पेट 10 ग्राम घृत गौ- दूध में डालकर सेवन करें और एक घंटे तक कुछ भी ना खाएं।
गुण-सभी प्रकार के कैंसर में प्रथम व द्वितीय अवस्था तक के अलग-अलग अनुपान से, पुराना गठिया, घुटनो में सुजन व दर्द, साइटिका, अमाशय में पितरोग, नामर्दी, शुक्राणु का अभाव, शीघ्र पतन, पागलपन, अवसाद, बिगड़ी हुई खांसी, गलगंड, पीलिया, वात रोग, रक्तरोग, रसायन, वाजीकरण, श्वास रोग, गले के रोग, हृदय रोग, पिताशय की पथरी में लाभकारी। जो स्त्री रजोदोष से पीडि़त हो, जिस स्त्री के रजनोप्रवृति प्रारंभ ही न हुई हो, जो कष्ट पीडि़त हो तथा जिन स्त्रियों को बार-बार संतान होकर मर जाती हो, उन सभी को राहत मिलेगी। मासिक धर्म शुरू होकर बीच में ही बंद हो गया हो और अनेकों औषधी व मंत्रों के प्रयोग से संतान उत्पन्न न हुई हो उन्हें निश्चित ही संतान होगी।